Thursday, July 12, 2012

धूप की बांहों में

वो सड़क पर धूप के आकार बिखरे हुए -
कई चिड़ियें दौड़ जाती हैं
इस ओर से उस ओर.
मन करता है देखती रहूं
उसके वादे के साए में,
बैठी रहूं.
मेरे गीले बालों पर जो पड़ रही है
उस से कहीं मीठी है, जो वहां पर
छन रही है.
वो वादा है धूप का,
उस रास्ते पर जहाँ से
मुझे लौट कर जाना है.
अभी जो मेरे साथ है उस से ज़ियादा
चाहता है मन आगे
उस साथ का वादा.
वही जो बिखरी हुई है
इस तरफ भी उस तरफ भी
उसके यूं ही बिखरे रहने का दिलासा...
कभी सिमट के ढल न जाये,
या उफ़न कर जल न जाए,
बस यूं ही मेरे चारों ओर फैली हो
पेड़ों के नीचे, उनकी परछांई में
इस बेंच के पीछे, मुझे बांहों में थामे.
और मेरे सामने इस पानी में कुछ कुछ
सूरज उन्ड़ेलती, गर्माहट संवारती
कुछ कुछ बीती
गर्मियों की यादें चमकाती.

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