Monday, June 03, 2013

शायद दुनिया के सबसे सुन्दर गीतों में से एक

हिन्दी फ़िल्म 'ममता' से।

~ लिखा मजरूह साहब ने और गाया हेमंत दा और लता जी ने। संगीत हेमंत दा का नहीं रोशन साहब का था। और मेरे दो पसंदीदा अदाकार - सुचित्रा सेन और अशोक कुमार।

छुपा लो दिल में यूँ प्यार मेरा,
के जैसे मंदिर में लौ दिये की ...

ये सच है जीना था पाप तुम बिन
ये पाप मैंने किया अब तक 
मगर थी मन में छवि तुम्हारी 
के जैसे मंदिर में लौ दिये की ...

फिर आग बिरहा की मत लगाना 
के जल के मैं राख हो चुकी हूँ 
ये राख माथे पे मैंने रख ली 
के जैसे मंदिर में लौ दिये की ...

:) अभी अभी बहुत समय बाद सुना और किसी से बाँटे बिना न रह पायी।