Tuesday, March 13, 2007

qiimateN

क़ीमतें

समझ फूलों की नहीं जिनको,
उनसे हंस के मिल न पाए हम।
दाम दे के हर फूल को समझे अपना-
इस ज़माने से क्योंकर निबाहें हम;
हर एक फूल एक रेशमी क़िस्सा है
क़ीमत किसी राज़ की क्या लगायें हम,
बागीचों में कम है फूलों का चलन अब,
बज़ार में उन्हें देख बहुत छटपटाये हम।
ज़माने से कहते न बेचे फूलों को,
फूलों ही से ये बात कह ना पाए हम...

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