वक़्त
मौसम भी क्या अजीब शह है मगर दुनिया में ,
मौसम भी क्या अजीब शह है मगर दुनिया में ,
फिर आता भी है तो कुछ लौटा हुआ-सा लगता नहीं है...
या उम्र की ही ख़ता है, यूँ गुज़रती जाती है -
के पिछला कुछ भी, गुज़रा हुआ-सा लगता नहीं है!
फिर ज़िन्दगी जो कुछ भी सिखा देती है बशर को,
जो चला था सीख के, उस से मिलता हुआ-सा लगता नहीं है...
जाने कौन सी क़िस्म के फूल खिलते हैं उस पार
इस तरफ भी जो बुझ गया, बुझा हुआ-सा लगता नहीं है.
नर्म जान के कभी, वक़्त ने झुकाया भी है कहीं,
मुझे कुछ अपना क़द, तो कम हुआ-सा लगता नहीं है.
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