तू. . .कुछ और भी है
मेरा प्यार तो है तू, मगर कुछ और भी है -
तू - कुछ और भी है...
कहीं छुपे पहाड़ी फूल की खुशबू है,
या खामोश लहरों का प्यारा-सा खेल,
नर्म हरी कोंपलों को सोचती नज़र है
या नन्हें परों को दिया आसमां का वादा...
किसी दर्द को सहलाता हाथ है
या उसका जवाब तलाशते क़दम...
तेरी आवाज़ में शबनम की नमी है
या किसी ख़ास ख्वाब का नशा,
इन आँखों में ठहरी कोई रोशनी है
या बहते पानी-सा तेरा ही वजूद?
जो भी है तू, जो कुछ भी तुझमें है
कुछ मेरी मंजिल है, कुछ मेरी राह-सा,
कहीं मेरे सवालों के जवाब-सा, तो
कहीं मचलते मेरे सवालों के साये-सा
या शायद,
सिर्फ, वो कुछ मस्त सुब्ह की रोशनी
जिसमें मेरा होना साफ़ नज़र आता है।
मेरा प्यार तो है तू, मगर कुछ और भी है -
तू - कुछ और भी है...
कहीं छुपे पहाड़ी फूल की खुशबू है,
या खामोश लहरों का प्यारा-सा खेल,
नर्म हरी कोंपलों को सोचती नज़र है
या नन्हें परों को दिया आसमां का वादा...
किसी दर्द को सहलाता हाथ है
या उसका जवाब तलाशते क़दम...
तेरी आवाज़ में शबनम की नमी है
या किसी ख़ास ख्वाब का नशा,
इन आँखों में ठहरी कोई रोशनी है
या बहते पानी-सा तेरा ही वजूद?
जो भी है तू, जो कुछ भी तुझमें है
कुछ मेरी मंजिल है, कुछ मेरी राह-सा,
कहीं मेरे सवालों के जवाब-सा, तो
कहीं मचलते मेरे सवालों के साये-सा
या शायद,
सिर्फ, वो कुछ मस्त सुब्ह की रोशनी
जिसमें मेरा होना साफ़ नज़र आता है।
3 comments:
Excellent,should i memorise it,did u read the book Being and Nothingness.
not so good bt ypp ...k..
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